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वासी हैं हम भारत क्यों नहीं सब मैं क्यों सोचूं तू निष्ठुर बदनाम औरत हम सही और गल्त की कशमकश में कभी-कभी इंसानियत भूल जाते हैं। और हम खुद दूसरों से कहते फिरते हैं कि इंसानियत मर चुकी है।

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